चांद पर
वापस जा रहे हैं
20 जुलाई 1969 को संयुक्त राज्य
अमेरिका के दो अंतरिक्ष यात्री चंद्रमा पर उतरे और सुरक्षित रूप से पृथ्वी पर लौट
आए। यह एक रहस्य है कि ऐसी यात्रा अब तक दोहराई क्यों नहीं गई। इंसानों को चाँद तक
ले जाने वाली पूरी परियोजना की लागत 25 बिलियन अमेरिकी डॉलर थी। इस परियोजना पर 400,000 इंजीनियरों और
तकनीशियनों ने काम किया था। अधिकांश देश संभवतः इस लागत के कारण चंद्रमा पर एक और
यात्रा की योजना बनाने से झिझक रहे हैं।
इसमें
शामिल अंतरिक्ष यात्रियों के जीवन को जोखिम बहुत कम होना चाहिए। यही एक कारण है कि
परियोजनाएं बहुत महंगी हैं। चंद्र रोवर्स जैसे रोबोटिक उपकरण मानव जीवन को जोखिम
में नहीं डालते हैं और इसलिए देशों ने चंद्रमा की खोजना के लिए रोवर्स भेजने पर
ध्यान केंद्रित किया है।
तथापि,
महाशक्तियाँ चंद्रमा
और मंगल पर बस्तियाँ बसाने की चुनौती को बहुत अधिक समय तक नहीं टाल सकतीं। इसलिए,
संयुक्त राज्य अमेरिका
ने 2020 में
आर्टेमिस कार्यक्रम की घोषणा की। इस कार्यक्रम की लागत 2025 तक 93 बिलियन अमेरिकी डॉलर होने की उम्मीद है।
यानी लगभग 772179 करोड़
भारतीय रुपये! इस कार्यक्रम में 2025 में एक महिला अंतरिक्ष यात्री और एक काले अंतरिक्ष यात्री
को चंद्रमा पर उतारने की योजना है। यह कार्यक्रम 2025 में समाप्त नहीं होगा। इसमें 2028 में चंद्रमा की सतह
पर लगभग एक सप्ताह बिताने के लिए एक दल को चंद्रमा पर उतारने की योजना है।
वे यह
सब कैसे करेंगे? नासा (NASA)
ने कार्यक्रम में
उपयोग के लिए कुछ प्रणालियाँ विकसित की हैं। हम इन प्रणालियों का संक्षेप में
वर्णन करेंगे।
अंतरिक्ष
प्रक्षेपण प्रणाली: यह एक विशाल रॉकेट प्रणाली है जिसका मूल (core)
चार रॉकेट इंजन और दो बूस्टर द्वारा संचालित है।
इसमें दूसरे चरण का रॉकेट है जो शक्ति प्रदान करने के लिए तरल हाइड्रोजन और
ऑक्सीजन का उपयोग करता है। प्रक्षेपण (launch) के समय इसका वजन आठ पूरी तरह से भरे हुए जंबो
जेट (बोइंग 747) के
बराबर होगा, यानी
लगभग 6.5 मिलियन
पाउंड। इस विशाल रॉकेट प्रणाली का पहला प्रक्षेपण 2022 में हुआ था। इसने चंद्रमा के चारों ओर चक्कर
लगाने और 11
पैराशूट का उपयोग करके पृथ्वी पर वापस आने और उतरने के लिए ओरियन नामक एक कर्मी दल
(crew) मॉड्यूल
को बिना किसी व्यक्ति के सफलतापूर्वक भेजा था।
दूसरे
चरण के रॉकेट को अंतरिम क्रायोजेनिक प्रोपल्शन स्टेज नाम दिया गया है, जो पेलोड को चंद्रमा
के चारों ओर एक परिक्रमा में ले जाएगा।
गेटवे:
एक छोटा अंतरिक्ष स्टेशन जो चंद्रमा की परिक्रमा करेगा और मानव लैंडिंग गतिविधियों
के लिए सहायता प्रदान करेगा। 2025 में इसके प्रक्षेपण होने की उम्मीद है।
ओरियन
कर्मी दल मॉड्यूल: यह सिस्टम का वह हिस्सा है जो कर्मी दल सदस्यों को ले जा सकता
है। ओरियन चार व्यक्तियों को ले जा सकता है और उन्हें 21 दिनों तक सभी आवश्यक चीजें प्रदान कर सकता
है।
मानव
अवतरण (landing) सिस्टम:
इसमें अंतरिक्ष यात्रियों को चंद्र सतह पर ले जाने के लिए एक अवतरण मॉड्यूल और
उन्हें चंद्र गेटवे पर वापस लाने के लिए एक आरोहण (ascent) मॉड्यूल शामिल है। यह प्रणाली चार अंतरिक्ष
यात्रियों को चंद्रमा की सतह पर ले जा सकती है और उनकी वापसी तक उन्हें दो सप्ताह
तक वहां बनाए रख सकती है।
आइए हम
चंद्रमा और मंगल पर अंतरिक्ष यात्रियों को भेजने की लागत के बारे में सोचें। व्यय
का आकार क्या है? क्या हम
किसी और चीज पर इतना पैसा खर्च करते हैं? मैं यहां कुछ घटनाओं की अनुमानित लागतों को सूचीबद्ध
करूंगा:
2020-21 के दौरान कोविड महामारी के कारण भारतीय अर्थव्यवस्था को नुकसान: 441 बिलियन अमेरिकी डॉलर
फरवरी 2023 के भूकंप के कारण तुर्किये की अर्थव्यवस्था को नुकसान: 84 बिलियन अमेरिकी डॉलर
युद्ध
की लागत को संक्षेप में प्रस्तुत करना मुश्किल है क्योंकि युद्ध आमतौर पर कई
वर्षों तक जारी रहते हैं। कई युद्धों में
चंद्रमा पर कॉलोनी बनाने की लागत से कहीं अधिक खर्च हुआ है।
श्रीनिवासन
रमणि
हिंदी
संपादक: श्री एम वी रोहरा English
version follows below
Going back to the moon
Two astronauts from the United States landed on the moon on
20th July 1969 and safely returned to earth. It is a mystery why such a trip
has not been repeated so far. The cost of the whole project that carried men to
the moon was 25 billion US dollars. 400,000 engineers and technicians had
worked on the project. Most countries have probably hesitated to plan another
visit to the moon because of this cost.
The risk to life of astronauts involved must be very low.
That is one reason that the projects are very costly. Robotic tools like the lunar rovers do not
risk human lives and therefore countries have focused on sending rovers to
explore the moon.
However, superpower nations cannot avoid the challenge of
setting up colonies on the moon and mars for too long. So, the United States
announced the Artemis programme in 2020. This programme is expected to cost 93
billion US dollars by 2025. That is approximately 772179 Crores of Indian
rupees! This program plans to land a woman astronaut and a Black astronaut on
the moon in 2025. The program will not end in 2025. It plans to land a few
people on the moon in 2028 to spend almost a week on the moon’s surface.
How will they do all this? NASA (N. A. S. A.) has developed
a few systems to be used in the programme. We will briefly describe these
systems.
The Space Launch System: This is a huge rocket system with a
core powered by four rocket engines and two boosters. It carries a second stage
rocket that uses liquid hydrogen and oxygen to provide the power. Its weight at
the time of launch would be that of eight fully loaded Jumbo jets (Boeing
747’s), that is approximately 6.5 million pounds. The first launch of this huge
rocket system took place in 2022. It successfully sent a crew module named
Orion without anyone inside to go round the moon and come back to the earth and
land using 11 parachutes.
The second stage rocket, named Interim Cryogenic Propulsion
Stage, which will carry the payload to an orbit around the moon.
The Gateway: A small space station that will orbit the moon
and provide support for human landing activities. This is expected to be
launched in 2025.
Orion: crew module. This is the part of the system that can
carry crew members. Orion can carry four persons and provide them all
essentials for 21 days.
The Human Landing System: This includes a descent module to
take astronauts to the lunar surface, and an ascent module to bring them back
to the lunar Gateway. The system can take four astronauts to the surface of the
moon and sustain them there up to two weeks, till their return.
Let us think about the cost of sending astronauts to the
moon and mars. What is the size of expenditure? Do we spend that amount of
money on anything else? I will list estimated costs of a few events here:
Damage to Indian economy due to Covid pandemic during
2020-21: US $ 441 Billion
Damage to Türkiye’s economy due to the Feb 2023 earthquake:
US $ 84 Billion
The costs of war are difficult to summarize because wars
usually continue over many years. Many
wars have cost much more than the cost of building a colony on the moon.
Srinivasan Ramani
Hindi Editor: M. V. Rohra
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